परिचय
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) एक ऐसा उपकरण है जिसे चुनावों में मतदाताओं के वोट रिकॉर्ड करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह मशीनें पारंपरिक पेपर बैलटिंग की तुलना में अधिक सटीकता और तेज़ी से परिणाम देने में सक्षम होती हैं। ईवीएम का उपयोग पहली बार 1982 में भारत में हुआ था और तब से इसका व्यापक रूप से कई देशों में उपयोग किया जाने लगा है।
ईवीएम के तहत, मतदाता एक बटन दबाकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देता है। इस प्रक्रिया में पेपर बैलट की आवश्यकता नहीं होती, जिससे मतगणना प्रक्रिया में तेजी आती है। पारंपरिक पेपर बैलटिंग में जहां मतपत्रों की गिनती में अधिक समय लगता है, वहीं ईवीएम के उपयोग से यह प्रक्रिया मिनटों में पूरी हो सकती है।
ईवीएम के उपयोग के कुछ प्रमुख फायदे हैं। सबसे पहले, यह मतदान प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाता है। दूसरा, यह मतगणना में मानवीय त्रुटियों की संभावना को कम करता है। तीसरा, यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है क्योंकि इसमें कागज की खपत नहीं होती।
हालांकि, ईवीएम के उपयोग के कुछ नुकसान भी हैं। इसकी सबसे बड़ी आलोचना इसकी सुरक्षा और हैकिंग के जोखिम को लेकर होती है। कई लोगों का मानना है कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है, जिससे चुनाव परिणामों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं। इसके अलावा, तकनीकी खराबी या मशीन की विफलता भी एक चिंता का विषय है, जो मतदान प्रक्रिया को बाधित कर सकती है।
विश्वभर में, कुछ देशों ने ईवीएम का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है या इसे सीमित कर दिया है। ‘ईवीएम कितने देशों में बैन है’ यह जानने के लिए हमें विभिन्न देशों की चुनावी प्रक्रियाओं और उनकी ईवीएम नीति पर ध्यान देना होगा। इस लेख के अगले भागों में हम विस्तार से उन देशों का विश्लेषण करेंगे जिन्होंने ईवीएम पर प्रतिबंध लगाया है और इसके कारणों पर भी चर्चा करेंगे।
चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न देशों ने ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के विभिन्न कारण सामने रखे हैं। तकनीकी खराबियों और सुरक्षा चिंताओं का प्रमुख कारण माना गया है। ईवीएम की तकनीकी खामियों के कारण वोटिंग प्रक्रिया में त्रुटियां हो सकती हैं, जिससे चुनावी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।
हैकिंग के खतरे भी एक महत्वपूर्ण कारण हैं जिसकी वजह से कई देशों ने ईवीएम पर बैन लगाया है। साइबर सुरक्षा के विशेषज्ञों का मानना है कि ईवीएम हैकिंग के लिए संवेदनशील हो सकती हैं, जिससे चुनाव परिणामों में हेरफेर की संभावना बढ़ जाती है। यह न केवल चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर जनता का विश्वास भी कम करता है।
चुनावी पारदर्शिता की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है। पारंपरिक बैलेट पेपर के मुकाबले ईवीएम में चुनावी प्रक्रिया का निरीक्षण करना और परिणामों की सत्यता की जांच करना कठिन होता है। कुछ विशेषज्ञों और संगठनों का तर्क है कि ईवीएम का उपयोग करने से मतदान प्रक्रिया में गड़बड़ियों और धोखाधड़ी की संभावना बढ़ जाती है।
विभिन्न देशों में ईवीएम के खिलाफ उठने वाली आवाजों में कई जाने-माने विशेषज्ञ और संगठन शामिल हैं। उदाहरण के लिए, जर्मनी ने ईवीएम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है, यह मानते हुए कि यह संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती हैं। नीदरलैंड्स और आयरलैंड जैसे देशों ने भी सुरक्षा चिंताओं के चलते ईवीएम को अपने चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिया है।
इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि ईवीएम कितने देशों में बैन है प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें विभिन्न तकनीकी और सुरक्षा चिंताओं को समझना और उनका विश्लेषण करना आवश्यक है।
ईवीएम का उपयोग कई देश चुनाव प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और सटीकता बढ़ाने के लिए करते हैं, लेकिन कुछ देशों ने इसे बैन कर दिया है। इन देशों में ईवीएम बैन करने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जैसे सुरक्षा चिंताएं, चुनावी पारदर्शिता की कमी, और तकनीकी मुद्दे।
नीदरलैंड

नीदरलैंड ने 2007 में ईवीएम पर बैन लगा दिया। इस निर्णय का मुख्य कारण सुरक्षा चिंताएं थीं। नीदरलैंड सरकार को यह डर था कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। इसके बाद, नीदरलैंड ने पेपर बैलेट्स के साथ मैन्युअल वोटिंग प्रणाली को अपनाया।
जर्मनी

जर्मनी ने 2009 में ईवीएम के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया। जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया कि ईवीएम का उपयोग संविधान के अनुरूप नहीं है क्योंकि यह पारदर्शिता के सिद्धांत का पालन नहीं करता। जर्मनी ने पेपर बैलेट्स और मैन्युअल वोटिंग प्रणाली को वापस अपनाया ताकि चुनाव प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और सुरक्षित रह सके।
आयरलैंड

आयरलैंड में 2004 के बाद से ईवीएम का उपयोग बंद कर दिया गया है। आयरलैंड सरकार ने इसे सुरक्षा और विश्वसनीयता की चिंताओं के चलते बैन किया। इसके बाद, आयरलैंड ने पारंपरिक पेपर बैलेट्स और मैन्युअल काउंटिंग प्रणाली को फिर से लागू किया।
फ्रांस

फ्रांस ने भी कुछ क्षेत्रों में ईवीएम के उपयोग पर रोक लगा दी है। फ्रांस में ईवीएम पर प्रतिबंध का कारण सुरक्षा चिंताएं और पारदर्शिता की कमी थी। फ्रांस ने विभिन्न प्रकार की पेपर बैलेट और मैन्युअल काउंटिंग विधियों को अपनाया है ताकि चुनावी प्रक्रियाएं निष्पक्ष और सुरक्षित रहें।
ईवीएम कितने देशों में बैन है, इसका जवाब केवल इन्हीं देशों तक सीमित नहीं है। अन्य देशों ने भी ईवीएम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा रखा है या इसे सीमित किया हुआ है। यह निर्णय मुख्य रूप से सुरक्षा, पारदर्शिता और विश्वसनीयता के मुद्दों पर आधारित होते हैं। ईवीएम के बजाय, ये देश पारंपरिक पेपर बैलेट और मैन्युअल काउंटिंग जैसी वैकल्पिक वोटिंग विधियों का उपयोग करते हैं।
ईवीएम का भविष्य

ईवीएम का भविष्य तकनीकी सुधार, सुरक्षा उपाय, और पारदर्शिता बढ़ाने के साथ ही और अधिक आशाजनक बनता जा रहा है। कई देशों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के उपयोग को लेकर चल रही बहस के बावजूद, विभिन्न तकनीकी उन्नति और सुरक्षा उपायों के माध्यम से इसे और भी विश्वसनीय बनाने के प्रयास हो रहे हैं।
सबसे पहले, तकनीकी सुधार की बात करें तो, ईवीएम में बायोमेट्रिक पहचान, ब्लॉकचेन तकनीक, और एन्क्रिप्शन जैसी नई तकनीकों का समावेश किया जा रहा है। ये तकनीकें चुनाव प्रक्रिया को न केवल अधिक सुरक्षित बनाती हैं, बल्कि इसमें पारदर्शिता भी बढ़ाती हैं। उदाहरण के लिए, बायोमेट्रिक पहचान से सुनिश्चित होता है कि वोटर की पहचान सही है, जबकि ब्लॉकचेन तकनीक वोटिंग डेटा को हैकिंग से सुरक्षित रखती है।
सुरक्षा उपायों की दृष्टि से, कई देशों ने ईवीएम के उपयोग के लिए कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल अपनाए हैं। इसमें नियमित सुरक्षा ऑडिट, मशीनों की टेस्टिंग, और स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा निरीक्षण शामिल हैं। इन उपायों का उद्देश्य किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या हेराफेरी को रोकना है।
वर्तमान में, कई देश ईवीएम का उपयोग कर रहे हैं और इसे और भी बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। भारत, ब्राजील, और एस्टोनिया जैसे देश ईवीएम का व्यापक उपयोग कर रहे हैं और वे इसे और अधिक सुरक्षित और पारदर्शी बनाने के लिए नए-नए उपाय अपना रहे हैं।
भविष्य में, ईवीएम का उपयोग और भी व्यापक हो सकता है। तकनीकी उन्नति और सुरक्षा में सुधार के साथ, इसे विभिन्न स्तरों के चुनावों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, मोबाइल वोटिंग और इंटरनेट वोटिंग जैसी नई प्रणालियाँ भी विकसित की जा रही हैं, जो ईवीएम की क्षमता को और अधिक बढ़ा सकती हैं।