पिनाकधारी
पिनाकधारी भगवान शिव का एक लोकप्रिय रूप है, जिसका अर्थ है “वह जो पिनाक धारण करता है”। पिनाक उनका धनुष है, जिसे एक असाधारण और दिव्य धनुष माना जाता है.
पिनाकधारी रूप में, भगवान शिव को अक्सर शांत और शक्तिशाली योद्धा के रूप में चित्रित किया जाता है। उनके हाथ में पिनाक और उनके कंधे पर उनके बाणों का तरकश होता है।यह रूप उनकी शक्ति और क्षमता का प्रतीक है, साथ ही साथ ब्रह्मांड के रक्षक के रूप में उनकी भूमिका का भी प्रतीक है।
चंद्रशेखर
चंद्र का अर्थ है “चंद्रमा”। चंद्रमा को हिंदू धर्म में पवित्रता, ज्ञान और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है।
शेखर का अर्थ है “शिखा” या “मुकुट”। यह भगवान शिव के जटाओं का जिक्र करता है, जिन्हें अक्सर शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
इस प्रकार, चंद्रशेखर नाम का अर्थ होता है “वह जो चंद्रमा को अपने मुकुट में धारण करता है”। यह भगवान शिव का एक रूप है,जिन्होंने देवी पार्वती से विवाह किया था।
यह नाम उन लोगों के लिए एकदम सही है जो बुद्धिमान, शक्तिशाली और दयालु होने की इच्छा रखते हैं। यह भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक भी है।
योगीश्वर
योग का स्रोत कुछ मान्यताओं के अनुसार, योग की शुरुआत खुद भगवान शिव ने ही की थी। उन्हें आदि योगी भी कहा जाता है, यानी योग के पहले गुरु।
योग में निपुणता शिव को योग में पूर्ण रूप से निपुण माना जाता है। वो सारे आसन और प्राणायाम जानते हैं और उनमें माहिर हैं।
योग का प्रतीक शिव की मूर्ति को अक्सर ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ दिखाया जाता है, जो योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। उनकी जटायें भी एक तरह से ऊर्जा के प्रवाह को दर्शाती हैं, जो योग में अहम माना जाता है।
पिप्पलाद
ऋषि पिप्पलाद एक महान ऋषि थे जिनका उल्लेख हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों में मिलता है। वे अपनी तपस्या, ज्ञान और शक्तियों के लिए जाने जाते थे।
माता-पिता का निधन: पिप्पलाद ऋषि का जन्म दधीचि ऋषि और उनकी पत्नी अपर्णा के पुत्र के रूप में हुआ था। कहते हैं कि जब वे बहुत छोटे थे, तभी उनके पिता का देवताओं के राजा इंद्र के साथ युद्ध में निधन हो गया। इसके बाद, शनि देव की कुदृष्टि के कारण उनकी माता अपर्णा का भी देहांत हो गया।
शनि देव से शत्रुता: माता-पिता की मृत्यु के बाद, पिप्पलाद को पता चला कि इसके पीछे शनि देव की कुदृष्टि ही जिम्मेदार थी। इससे क्रोधित होकर उन्होंने शनि देव को श्राप दिया और उन्हें लंगड़ा बना दिया। तभी से ऋषि पिप्पलाद और शनि देव एक दूसरे के शत्रु बन गए।
भगवान शिव का अवतार कुछ मान्यताओं के अनुसार, ऋषि पिप्पलाद भगवान शिव के अवतार थे। उनकी शक्तियां और ज्ञान भगवान शिव के समान ही थे।
शरभावतार
नारद मुनि और भगवान विष्णु का विवाद: पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नारद मुनि ने भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच विवाद करवा दिया। विवाद की वजह यह थी कि दोनों में से कौन श्रेष्ठ है
नरसिंह अवतार का प्रलय: इस विवाद को खत्म करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने नरसिंह अवतार का रूप धारण किया। नरसिंह अवतार ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था।
शिव का क्रोध और शरभावतार: नरसिंह अवतार अत्यधिक क्रोध से भरे हुए थे और उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। इस स्थिति को देखकर भगवान शिव चिंतित हो गए। उन्होंने नरसिंह अवतार का क्रोध शांत करने के लिए शरभावतार का रूप धारण किया।
शरभा का स्वरूप: शरभावतार आठ पैर वाला एक विशाल पक्षी जैसा प्राणी है। उसका शरीर सिंह के समान और सिर गरुड़ पक्षी जैसा होता है। उसका पूरा शरीर काले रंग का होता है और उसकी आंखें लाल होती हैं।
नरसिंह अवतार का शांत होना: शरभावतार के भयंकर रूप को देखकर नरसिंह अवतार का क्रोध शांत हो गया। इस तरह से शिव ने ब्रह्मांड को संतुलन में लाने का काम किया।
रिणमोक्ष
रिणमोक्ष का अर्थ होता है “ऋण से मुक्ति”।
इस अवतार में भगवान शिव ने अपने भक्तों को ऋण के बोझ से मुक्ति दिलाई थी।
माना जाता है कि उस समय समाज में ऋण का बहुत बड़ा संकट था। लोग कर्ज के कारण परेशान थे।
भक्तों की रक्षा:भगवान शिव ने रिणमोक्ष अवतार लेकर लोगों की पीड़ा को दूर किया।
उन्हें इस कष्ट से अपने भक्तों को मुक्ति दिलाई।
ऋणमोक्ष अवतार का महत्व: भगवान शिव के इस रूप की पूजा मुख्य रूप से ऋण से मुक्ति पाने के लिए की जाती है।उन्हें आर्थिक संकट दूर करने वाला देवता माना जाता है।