परिचय
भारत त्योहारों का देश है, जहाँ विविधता में एकता की झलक मिलती है। यहाँ विभिन्न धर्म, संस्कृति और परंपराओं के त्योहार मनाए जाते हैं, जो भारतीय समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने का हिस्सा हैं। इन त्योहारों के माध्यम से लोग अपनी धार्मिक आस्थाओं, सांस्कृतिक धरोहरों और पारंपरिक मान्यताओं को प्रकट करते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं, बल्कि समाज में सामूहिकता और भाईचारे की भावना को भी प्रबल करते हैं।
भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में दीवाली, होली, ईद, क्रिसमस, और मकर संक्रांति जैसे त्योहार शामिल हैं। हर एक त्योहार की अपनी अनूठी कहानी और धार्मिक महत्व है, जो इसे विशेष बनाता है। उदाहरण के लिए, दीवाली को रौशनी का पर्व कहा जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। वहीं, होली रंगों का त्योहार है, जो वसंत ऋतु के आगमन और जीवन की रंगीनता को दर्शाता है।
यह ब्लॉग पोस्ट भारत के 10 सबसे ज्यादा मनाए जाने वाले त्योहारों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा। इसमें हर त्योहार की प्रासंगिकता, उसके मनाने के तरीके और उसके पीछे की कहानी का वर्णन होगा। साथ ही, यह भी बताया जाएगा कि ये त्योहार हमारे जीवन में क्या महत्व रखते हैं और यह भारतीय संस्कृति की समृद्धि को कैसे दर्शाते हैं।
इस प्रकार, यह पोस्ट उन सभी पाठकों के लिए एक संपूर्ण गाइड साबित होगी जो भारतीय त्योहारों के बारे में जानना चाहते हैं। यह न केवल आपको इन त्योहारों की जानकारी देगा, बल्कि इनके माध्यम से भारतीय संस्कृति और परंपराओं के गहरे अर्थ को समझने में भी मदद करेगा।
दिवाली
दिवाली, जिसे ‘रोशनी का त्योहार’ कहा जाता है, भारतीय समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह त्योहार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ती है। दिवाली का मुख्य उद्देश्य असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाना होता है। इस अवसर पर लोग अपने घरों और कार्यस्थलों को दीपों, मोमबत्तियों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाते हैं, जिससे संपूर्ण वातावरण उज्ज्वल और उत्सवमय हो जाता है।
दिवाली का धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। यह माना जाता है कि इस दिन भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीपों से सजाया था। इसी परंपरा को आज भी निभाया जाता है। साथ ही, इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणेश की पूजा भी की जाती है, जिससे घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे।
दिवाली के दौरान पटाखे जलाने का भी विशेष रिवाज है, जो बुराई को दूर करने और खुशियों का स्वागत करने का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, लोग एक-दूसरे को मिठाइयां और उपहार भेंट करते हैं, जिससे भाईचारे और प्रेम का संदेश फैलता है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक, सभी इस त्योहार का आनंद लेते हैं और इसे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
भारत के शीर्ष 10 त्योहारों में दिवाली विशिष्ट स्थान रखता है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता को दर्शाता है और पूरे देश में एकता और सौहार्द का संदेश फैलाता है।
होली
होली, जिसे ‘रंगों का त्योहार’ भी कहा जाता है, भारत के सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया जाता है। होली का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, जो भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, प्रह्लाद की भक्ति से नाराज होकर, उसके पिता हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई प्रयास किए। अंततः होलिका, जो कि आग में जलने से सुरक्षित थी, प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गया और होलिका जलकर राख हो गई।
होली के दिन लोग एक-दूसरे पर रंग और गुलाल फेंकते हैं, जिससे चारों ओर खुशी और उत्साह का माहौल बन जाता है। इस त्योहार को मनाने के लिए लोग पारंपरिक गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं और विशेष मिठाइयों का आनंद लेते हैं। गुझिया, मालपुआ, ठंडाई और दही वड़ा जैसे पकवान इस अवसर पर विशेष रूप से बनाए जाते हैं।
भारत के विभिन्न हिस्सों में होली का मनाने का तरीका थोड़ा अलग हो सकता है। उत्तर भारत में यह त्योहार विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लोग ढोलक की थाप पर नाचते और गाते हैं। मथुरा और वृंदावन में होली का एक अलग ही महत्व है, जहां इसे भगवान कृष्ण और राधा की लीला के रूप में मनाया जाता है।
होली का उत्सव केवल भारत तक ही सीमित नहीं है; इसे नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे अन्य देशों में भी भारतीय समुदायों द्वारा मनाया जाता है। इसके अलावा, विदेशों में बसे भारतीय भी इस त्योहार को बड़े उत्साह से मनाते हैं, जिससे यह त्योहार वास्तव में वैश्विक हो गया है। होली का यह रंग-बिरंगा उत्सव न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में भाईचारे और एकता का भी प्रतीक है।
क्रिसमस
क्रिसमस ईसाई समुदाय का प्रमुख त्योहार है जो 25 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें ईसाई धर्म के संस्थापक और मानवता के उद्धारकर्ता के रूप में माना जाता है। क्रिसमस का त्यौहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का भी प्रतीक है।
इस दिन चर्च में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं, जहां लोग मिलकर प्रार्थना करते हैं और यीशु मसीह के जन्म का उत्सव मनाते हैं। चर्चों को विशेष रूप से सजाया जाता है और रोशनी से जगमगाया जाता है। बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम और नाटकीय प्रस्तुतियां भी आयोजित की जाती हैं, जो क्रिसमस के उत्साह को और बढ़ाते हैं।
क्रिसमस के दौरान घरों को क्रिसमस ट्री और लाइट्स से सजाया जाता है। क्रिसमस ट्री को सजाना इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें रंग-बिरंगे बल्ब, सितारे, और अन्य सजावटी वस्तुएं लगाई जाती हैं। इसके अलावा, लोग अपने घरों को रोशनी से सजाते हैं और विभिन्न प्रकार की सजावटी वस्तुओं का उपयोग करते हैं।
क्रिसमस पर लोग एक-दूसरे को उपहार भी देते हैं, जो प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है। इस दिन विशेष मीठे व्यंजन और केक बनाए जाते हैं, जो इस त्योहार की मिठास को और बढ़ाते हैं। भारत में यह त्योहार केवल ईसाई समुदाय तक सीमित नहीं है; विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग भी इसमें भाग लेते हैं और इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।
भारत के शीर्ष 10 त्योहारों की सूची में क्रिसमस का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार लोगों को एकजुट करता है और प्रेम, शांति, और सौहार्द का संदेश देता है।
पोंगल
पोंगल दक्षिण भारत का एक प्रमुख फसल उत्सव है, जिसे विशेषकर तमिलनाडु में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह में मकर संक्रांति के समय मनाया जाता है और आमतौर पर चार दिनों तक चलता है। पोंगल का मुख्य उद्देश्य भगवान सूर्य की पूजा और नई फसल का स्वागत करना है। इस दौरान किसान अपनी मेहनत और फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं।
पोंगल का पहला दिन ‘भोगी’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें पुराने सामानों को त्याग कर नए जीवन की शुरुआत की जाती है। दूसरा दिन, जिसे ‘सूर्य पोंगल’ कहा जाता है, विशेष रूप से भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और विशेष पकवान बनाए जाते हैं। इस त्योहार के दौरान चावल और गुड़ से बने पकवान, जैसे कि ‘पोंगल’ नामक मीठा व्यंजन, अत्यंत लोकप्रिय होते हैं।
पोंगल के तीसरे दिन को ‘मट्टू पोंगल’ कहते हैं, जिसमें गाय और बैलों की पूजा की जाती है। इस दिन पशुओं को सजाया जाता है और उन्हें विशेष पकवान खिलाए जाते हैं। चौथे और अंतिम दिन को ‘कन्या पोंगल’ कहा जाता है, जिसमें परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर भोजन और खुशियों का आदान-प्रदान किया जाता है।
पोंगल न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह लोगों के बीच एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। यह त्योहार तमिलनाडु की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है और इसे मनाने से लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलता है। पोंगल के दौरान होने वाली रंग-बिरंगी रांगोली, पारंपरिक नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियां इस त्योहार को और भी आकर्षक और मनोहारी बनाती हैं।
गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, भारत के सबसे प्रमुख और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह उत्सव आमतौर पर अगस्त या सितंबर महीने में पड़ता है। गणेश चतुर्थी का महत्व और भव्यता इसे भारत के शीर्ष 10 त्योहारों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।
इस पर्व की शुरुआत गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना से होती है। इन मूर्तियों को घरों, सार्वजनिक पंडालों और मंदिरों में स्थापित किया जाता है। भक्तगण गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं, जिसमें मंत्रोच्चारण, भजन-कीर्तन और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। यह पूजा दस दिनों तक चलती है, जिसके दौरान भक्त गणेश जी को विभिन्न प्रकार के प्रसाद, विशेषकर मोदक, अर्पित करते हैं।
गणेश चतुर्थी का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है, जिसे विसर्जन दिवस कहा जाता है। इस दिन गणेश मूर्तियों को धूमधाम से जल में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन के दौरान भक्त गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ के नारों के साथ गणेश जी को विदा करते हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक भावनाओं का प्रतीक होता है, बल्कि सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है, जहां यह त्योहार व्यापक रूप से और बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। मुंबई, पुणे और अन्य शहरों में इस अवसर पर भव्य पंडाल सजाए जाते हैं, जहां लाखों लोग गणेश जी के दर्शन करने आते हैं। गणेश चतुर्थी की इस अद्वितीयता और भव्यता ने इसे न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध बना दिया है।
दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा भारत के सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में। यह त्योहार आश्विन माह में नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित होता है। दुर्गा पूजा को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है, जिसमें देवी दुर्गा महिषासुर नामक राक्षस का विनाश करती हैं।
दुर्गा पूजा का मुख्य आकर्षण पंडालों की भव्य सजावट होती है। पंडालों को विभिन्न थीमों पर सजाया जाता है और इनमें देवी दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की जाती है। पंडाल होपिंग यानी विभिन्न पंडालों का दौरा करना इस त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां लोग अपने प्रियजनों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंडाल तक जाते हैं और विभिन्न मूर्तियों और सजावटों का आनंद लेते हैं।
पूरे त्योहार के दौरान, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें नृत्य, संगीत और नाटकों का प्रदर्शन होता है। इस अवसर पर लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और बड़े पैमाने पर सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं, जिसे ‘भोग’ कहा जाता है। ‘भोग’ में खासतौर पर खिचड़ी, सब्जी, चटनी और मिष्ठान्न शामिल होते हैं।
इसके अलावा, दुर्गा पूजा के दौरान ‘संध्या आरती’ और ‘धुनुची नाच’ जैसे विशेष अनुष्ठान भी किए जाते हैं। ‘संध्या आरती’ में दीप जलाकर देवी की आराधना की जाती है, जबकि ‘धुनुची नाच’ में लोग धुनुची (धूपदान) लेकर नृत्य करते हैं।
दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है और सामुदायिक भावना को प्रबल करता है। इस प्रकार, दुर्गा पूजा का आयोजन भारत के शीर्ष 10 त्योहारों में से एक होने का गौरव प्राप्त करता है, जो देश की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करता है।
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व जनवरी माह में तब मनाया जाता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व भी है और इसे नए कृषि वर्ष की शुरुआत के रूप में देखा जाता है, जो किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
इस दिन लोग तिल और गुड़ के लड्डू बनाते हैं और एक दूसरे को बांटते हैं। तिल और गुड़ का सेवन इस त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो शरीर को गर्मी प्रदान करता है और सर्दियों के मौसम में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
पतंग उड़ाने की परंपरा मकर संक्रांति का एक और विशेष आकर्षण है। आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों का नजारा अद्वितीय होता है और लोग इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं, जिसमें लोग अपना कौशल दिखाते हैं।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व भी है। इस दिन गंगा स्नान और पवित्र नदियों में डुबकी लगाने का विशेष महत्व है। लोग प्रातःकाल में गंगा स्नान करते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह पर्व विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है जैसे कि पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, और गुजरात में उत्तरायण।
मकर संक्रांति का त्योहार नई फसल के आगमन और समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है और जीवन में खुशहाली लाने का संदेश देता है। मकर संक्रांति के उत्सव में भागीदारी भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहरी समझ और सम्मान को दर्शाता है।
बैसाखी
बैसाखी पंजाब और हरियाणा में मनाया जाने वाला प्रमुख फसल उत्सव है, जो अप्रैल माह में आता है और रबी फसल की कटाई के बाद पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का विशेष महत्त्व खेती-किसानी से जुड़ा है, क्योंकि यह समय होता है जब किसान अपनी फसलों की कटाई कर उनका आनंद लेते हैं और अपने परिश्रम के फलों का उत्सव मनाते हैं। इस अवसर पर खेतों में लहराती सुनहरी फसलें किसानों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरती हैं।
सिख धर्म के लिए, बैसाखी का विशेष धार्मिक महत्व है। यह दिन 1699 में खालसा पंथ की स्थापना का प्रतीक है, जो सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इस दिन सिख श्रद्धालु गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित करते हैं, जहां वे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के पाठ का श्रवण करते हैं और सामूहिक अरदास में भाग लेते हैं। गुरुद्वारों में लंगर (सामूहिक भोजन) का आयोजन भी होता है, जिसमें सभी धर्म और समुदाय के लोग भाग लेकर समानता और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।
बैसाखी के उत्सव में भंगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लोग रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे होकर इन नृत्यों में भाग लेते हैं, जिनमें ढोल की धमक और जोश भरी ऊर्जा देखने को मिलती है। यह नृत्य किसानों की मेहनत और खुशी का प्रतीक माने जाते हैं। इनके माध्यम से वे अपनी समृद्धि और खुशहाली का जश्न मनाते हैं।
बैसाखी का यह पर्व न केवल सिख और पंजाबी समाज के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे भारत के अन्य हिस्सों में भी बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धता का प्रतीक है, जो किसानों की मेहनत और उनके परिश्रम को सम्मानित करता है।
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि भारत के प्रमुख धार्मिक त्योहारों में से एक है, जो भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है। यह पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन, शिव भक्त उपवास रखते हैं और शिवलिंग पर दूध, जल, और बेलपत्र चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। महाशिवरात्रि का विशेष महत्त्व इस बात में भी है कि इसे शिव और पार्वती के विवाह का दिन माना जाता है।
इस पर्व की शुरुआत प्राचीन काल से हुई मानी जाती है और आज भी इसे पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन, शिव मंदिरों में विशेष प्रकार की सजावट की जाती है और भगवान शिव के भजनों और मंत्रों का गुणगान किया जाता है। यह त्योहार रातभर जागरण और आराधना के साथ मनाया जाता है, जहां भक्त भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके अद्वितीय गुणों का स्मरण करते हैं।
महाशिवरात्रि के महत्व को देखते हुए, इसे न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से काशी, उज्जैन, और हरिद्वार जैसे पवित्र स्थलों पर भक्तों की बड़ी भीड़ उमड़ती है। वहां पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भाग लेकर भक्त अपने जीवन को धन्य मानते हैं।
महाशिवरात्रि का पर्व इस बात का प्रतीक है कि भगवान शिव के प्रति अनन्य भक्ति और श्रद्धा से जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। यह पर्व हमें भगवान शिव के आदर्शों और उनके द्वारा स्थापित धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इस प्रकार, महाशिवरात्रि न केवल शिव भक्तों के लिए, बल्कि हर भारतीय के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है।
ओणम
ओणम, केरल का प्रमुख और सबसे रंगीन फसल उत्सव है, जो अगस्त और सितंबर के महीने में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार राजा महाबली की स्मृति में मनाया जाता है, जिनकी कहानी केरल की संस्कृति और लोककथाओं में गहराई से रची-बसी है। ओणम के दौरान, केरल के लोग विभिन्न पारंपरिक गतिविधियों और समारोहों में भाग लेते हैं, जो इस त्योहार की विशेषता हैं।
ओणम के दौरान पारंपरिक नृत्य और संगीत प्रमुख आकर्षण होते हैं। ‘कथकली’ और ‘मोहनियाट्टम’ जैसे शास्त्रीय नृत्य का आयोजन किया जाता है, जिसमें कलाकार रंग-बिरंगे परिधानों में सजे होते हैं। इसके अलावा, ‘पुलिकली’ नामक नृत्य भी बहुत लोकप्रिय है, जिसमें लोग बाघ के रूप में सजे होते हैं और नृत्य करते हैं।
ओणम की झांकी भी इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कई स्थानों पर परेड और झांकियों का आयोजन किया जाता है, जिसमें राजा महाबली की महिमा का प्रदर्शन किया जाता है। इस दौरान, सजीव झांकी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से राजा महाबली की पौराणिक कथा को जीवंत किया जाता है।
ओणम साद्य, एक विशेष भोज, इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है। यह भोज केले के पत्ते पर परोसा जाता है और इसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं, जैसे ‘अवियल’, ‘थोरन’, ‘सांभर’, ‘परिप्पु’ और ‘पायसम’। यह भोज न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि केरल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है।
ओणम के समय गांव और शहरों में सजावट का विशेष ध्यान रखा जाता है। घरों को फूलों की रंगोली, जिसे ‘पुक्कलम’ कहते हैं, से सजाया जाता है। इस प्रकार ओणम न केवल एक फसल उत्सव है बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो केरल की सांस्कृतिक विविधता को सामने लाता है और लोगों को एकजुट करता है।